सोमवार, 25 जून 2012

सामान


घर के हर कोने में
बिखरी जिन्दगी,
आज बस सामान बन कर रह गई ,
चेहरा एक तस्वीर बन कर रह गया,
आवाज एक अरमान बन कर रह गई ,
हो गया ग़म से मेरा यूँ सामना,
फिर ख़ुशी अनजान बन कर रह गई ।

रविवार, 24 जून 2012

एक मिट्ठी देह


धुल के एक कण का अस्तित्व,
 कैसे नकारा जा सकता है,
जब एक सुदीर्घ सुन्दर काया
शेष रह जाती है बस  ,
एक मुट्ठी राख में ,
कैसे अस्वीकार किया जा सकता है,
एक तिनके का महत्व,
जब मनुष्य की सारी  शक्ति,
उसका सारा बल,
परिवर्तित हो जाता है,
एक अस्थि कलश में,
कैसे बांधा जा सकता है,
वायु  को किसी रूप में,
जब सारे ब्रह्माण्ड  को अपने में,
समाहित करने वाला मस्तिष्क ,
स्वयं खो जाता है किसी धुंए में,
कैसे समझ सकते हैं,
 हम स्वयं को,
 इन पञ्च तत्वों से भिन्न,
जब मिल जाना है ,                                                                                                                                  हमें अंत में,
 इन्ही पञ्च तत्वों में।


मंगलवार, 19 जून 2012

रात

कहीं पड़ा था मैंने,
कि  सबसे खतरनाक समय होता है,
रात को बिस्तर पर  लेटने  के बाद,
और नींद आने से पहले का,
जब सारी  दुनिया सो जाती है,
और रात के सन्नाटे में,
किसी एक को नींद नहीं आती  है,
आजकल रोज रात को
 मेरी भी यही हालत होती है,
बिस्तर पर लेटते ही,
एक अजीब सी घबराहट होती है,
चरों और अँधेरे को देख कर लगता है ,
कि अब ये रात कभी ख़तम ही नहीं होगी,
सारी  दुनिया यूँही ,
अँधेरे में डूबी रहेगी,
क्योंकि ऐसी ही एक अँधेरी रात में,
मेरे घर का दीप बुझ गया था,
मेरा एक अपना मुझसे छिन गया था,
और मैं रात के सन्नाटे में,
चीखती चिल्लाती रह गयी थी ,
उस रात के बाद रोज सुबह होती है,
मगर मेरे जीवन का सन्नाटा ज्यों का त्यों रहता है,
रात से भी गहरा और विस्तृत।


दुःख

अपने जीवन में मैंने झेले हैं ,
इतने दुःख ,
कि अब दुखो से एक परिचय सा हो गया है,
हर पल में तैयार रहती हूँ ,
किसी नए दुःख के लिए ,
आने वाला हर दुःख,
अब न मुझे डराता है,
न ही रुलाता है,
बल्कि संयत होकर,
पत्थर सी बनी,
देखती हूँ मैं,
उस दुःख को,
सामना करती हूँ उसका ,
नापती हूँ उसकी गहराई,
तुलना करती हूँ,
अतीत में झेले हुए दुखो से,
और अगर वो दुःख ,
किसी भी द्रष्टि से,
कम लगता है मुझे,
तो बजाय रोने के,
हंस देती हूँ उस पर,
क्योंकि जी रही हूँ मैं ,
अपनी आत्मा पर,
एक इतने बड़े दुःख का बोझ लादे ,
कि उसके सामने,
 लगता है दुनिया का हर दुःख ,
एक सुख सा।

गुरुवार, 14 जून 2012

ये कहाँ ला कर खड़ा कर दिया है ,
परिस्थितियों  ने मुझे,
 जहाँ से कोई राह कहीं को नहीं जाती,
दुःख की पराकाष्ठा  पर,
जहाँ आकर प्रार्थनाएं भी दम तोड़ देती है,
टूट जातें हैं आस्था और विश्वास,
निरुत्तर हो जरती हैं पत्थर की मूर्तियाँ,
सपने चूर-चूर हो जाते हैं,
रह जाते हैं उम्र भर के लिए कुछ आंसू,
और कुछ घुटी हुयी चीखें,
निष्प्राण सा हो जाता है मन ,
रह जाता है एक अंतहीन खालीपन,
ऐसा ही कुछ हुआ है मेरे साथ,
छिन गया है कुछ ऐसा ,
मुश्किल है जिसे, शब्दों में व्यक्त करना ,
रह गई  हैं बस कुछ यादें,
बन कर एक अंतिम सहारा।




एक जीता जगता ,
हँसता बोलता इन्सान ,
सिर्फ एक तस्वीर बन कर रह जाता है,
उसका साथ बस एक याद  बन कर रह जाता है,
कानों में गूंजती रहती हैं उसकी कही हुई  बातें,
आँखों में तैरते रहते हैं,
वो दिन और वो रातें,
आखिर क्यों चला जाता है वो इतनी दूर,
आखिर क्यों हो जाते हैं हम इतने मजबूर,
रह जाती हैं तो सिर्फ
 साथ गुज़ारे हुए पलों की कुछ यादें,
और कुछ भी हाथ नहीं आता  है,
वक़्त की दौड़  में ,
फिर वो पता नहीं कहाँ खो जाता है।


हैरान हो जाती हूँ मैं ,
ये देख कर
कि  लोग क्यों मौन कर देते हैं मुझे,
मृत्यु की चर्चा करने पर,
या बदल देते हैं विषय,
जैसे बाज़ को
अपने ऊपर मंडराता देखकर ,
कबूतर बंद कर लेता है अपनी आँखें,
और भूल जाना  चाहता है कि ,
बाज़ की आँखें खुली हुई हैं,
और वो बढता आ रहा है
 निरंतर उसी की ओर ।