मंगलवार, 19 जून 2012

दुःख

अपने जीवन में मैंने झेले हैं ,
इतने दुःख ,
कि अब दुखो से एक परिचय सा हो गया है,
हर पल में तैयार रहती हूँ ,
किसी नए दुःख के लिए ,
आने वाला हर दुःख,
अब न मुझे डराता है,
न ही रुलाता है,
बल्कि संयत होकर,
पत्थर सी बनी,
देखती हूँ मैं,
उस दुःख को,
सामना करती हूँ उसका ,
नापती हूँ उसकी गहराई,
तुलना करती हूँ,
अतीत में झेले हुए दुखो से,
और अगर वो दुःख ,
किसी भी द्रष्टि से,
कम लगता है मुझे,
तो बजाय रोने के,
हंस देती हूँ उस पर,
क्योंकि जी रही हूँ मैं ,
अपनी आत्मा पर,
एक इतने बड़े दुःख का बोझ लादे ,
कि उसके सामने,
 लगता है दुनिया का हर दुःख ,
एक सुख सा।

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