रविवार, 24 जून 2012

एक मिट्ठी देह


धुल के एक कण का अस्तित्व,
 कैसे नकारा जा सकता है,
जब एक सुदीर्घ सुन्दर काया
शेष रह जाती है बस  ,
एक मुट्ठी राख में ,
कैसे अस्वीकार किया जा सकता है,
एक तिनके का महत्व,
जब मनुष्य की सारी  शक्ति,
उसका सारा बल,
परिवर्तित हो जाता है,
एक अस्थि कलश में,
कैसे बांधा जा सकता है,
वायु  को किसी रूप में,
जब सारे ब्रह्माण्ड  को अपने में,
समाहित करने वाला मस्तिष्क ,
स्वयं खो जाता है किसी धुंए में,
कैसे समझ सकते हैं,
 हम स्वयं को,
 इन पञ्च तत्वों से भिन्न,
जब मिल जाना है ,                                                                                                                                  हमें अंत में,
 इन्ही पञ्च तत्वों में।


6 टिप्‍पणियां:

  1. गहन सोचपरक रचना...

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  2. बहुत गहन रचना ..... सच हम एक मुट्ठी राख़ ही तो हैं ...



    कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...

    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

    जवाब देंहटाएं