गुरुवार, 14 जून 2012



एक जीता जगता ,
हँसता बोलता इन्सान ,
सिर्फ एक तस्वीर बन कर रह जाता है,
उसका साथ बस एक याद  बन कर रह जाता है,
कानों में गूंजती रहती हैं उसकी कही हुई  बातें,
आँखों में तैरते रहते हैं,
वो दिन और वो रातें,
आखिर क्यों चला जाता है वो इतनी दूर,
आखिर क्यों हो जाते हैं हम इतने मजबूर,
रह जाती हैं तो सिर्फ
 साथ गुज़ारे हुए पलों की कुछ यादें,
और कुछ भी हाथ नहीं आता  है,
वक़्त की दौड़  में ,
फिर वो पता नहीं कहाँ खो जाता है।

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